mithila sahitysudha

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सोमवार, 2 अप्रैल 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल:-

ठुमैक ठुमैक नै चलू गोरी जमाना खराब छै
मटैक मटैक चलब कें जुर्वना वेहिसाब` छै

जान मरैय सबहक अहाँक चौवनी मुश्कान
अहिं पर राँझा मजनू सन दीवाना वेताब छै

कोमल कंचन काया अहाँक चंचल चितवन
जेना हिरामोती सं भरल खजाना लाजवाब छै

निहायर निहायर देखैय अहाँ कें सभ लोक
प्रेम निसा सं मातल सभ परवाना उताव छै

जमाना कहैय अहाँक रूप खीलल गुलाब छै
झुका कS नजैर अहाँक मुश्कुराना अफताव छै
............वर्ण:-१८.....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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