mithila sahitysudha

mithila sahitysudha

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

               गजल
मतलब के सब संगी मतलबी छै लोक
कियो मनाबै छै ख़ुशी कियो मनाबै छै शोक

स्वार्थक वशीभूत दुनिया की जाने ओ प्रेम
प्रेम पथ पर किएक कांट बोए छै लोक

सभक मोन में भरल छै घृणाक जहर
दोसर के सताबै में तृष्णा मेटाबै छै लोक

ललाट शोभित चानन गला पहिर माला
भीतर भीतर किएक गला कटै छै लोक

सधुवा मनुखक जीवन भगेल बेहाल
कदम कदम पर जाल बुनैत छै लोक

अप्पन ख़ुशी में ओतेक ख़ुशी कहाँ होए छै
जतेक आनक दुःख में ख़ुशी होए छै लोक

अप्पन दुःख में ओतेक दुखी कहाँ होए छै
जतेक आनक ख़ुशी में दुखी होए छै लोक

अप्पन चिंतन मनन कियो नहि करेय
आनक कुचिष्टा में जीवन बिताबै छै लोक

विचित्र श्रृष्टिक विचित्र पात्र छै सब लोक
"प्रभात" के किएक कुदृष्टि सं देखै छै लोक
.....................वर्ण:-१६ ................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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